मेरी पहली मोहब्बत

 

महीना कुछ यूं ही नवंबर-दिसंबर की रही होगी। आकाश साफ़ थी हल्की धूप निकल चुकी थी। हम अपने दोस्तों के साथ कॉलेज परिसर में ही बैठकर धूप का लुत्फ उठा रहे थे आज हम दोस्तों यहां वहां की बातें फेंक रहे थे तभी मेरी ध्यान कॉलेज के मेन गेट के पास जाकर टिकी । 

हल्के नीले रंग की स्वेटर, पीली सलवार सूट और अपने रेशमी बालों को मोड़कर आगे की तरफ कर के कोई आ रही थी।उसके चेहरे पर पड़ती हल्की धूप और उसके लिलार की लाल बिंदी गजब की खिल रही थी। जब वह मेरी नजदीक आई तो मेरी आंखें खुली की खुली रह गई। 

अरे! यह तो निशा है । 

उसकी नाम मेरे मुंह से अचानक निकल गए। मैंने निशा को कई बार प्रपोज कर चुका था लेकिन उसका अब तक कोई भी जवाब नहीं मिला था । वह ना तो कभी इंकार की थी और नहीं कभी हामी भरी थी। 

बस वह सिर्फ मुस्कुरा कर टाल देती थी । यही कारण था कि मेरे दोस्त मुझे हमेशा कहा करता था कि निशा भी तुम्हें प्यार करती है तभी तो वह तुम्हेंनहीं करती है ।



आज उसे इतनी सजी - सबरी देखकर मैंने भी ठान लिया था कि आज उससे जवाब लेकर ही रहूंगा। 

अब हम लोग क्लास में जा चुके थे लेकिन जैसे ही ब्रेक में मौका मिला उससे पूछ ही लिया " निशा! मैं तुमसे एक बात पूछना चाहता हूं " 

" पूछो '' निशा ने कहीं। 

मैं अपनी आवाजों को दबाते हुए बोल ही रहा था कि उसने मेरी बातों को काटते हुए बोली " ठीक है !आज तुम कुछ नहीं कहोगे मैं ही बोलूंगी " 

यह सुन कर तो मेरी धड़कन जोड़ो जोर से धड़कने लगा । पूरे शरीर में बिजली सी चौंध गई। पर उसने जो कहीं आवाज सुनकर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। आज तो मेरी जिंदगी का सबसे हसीन पल था, जिसका इंतजार मैं बरसों से कर रहा था वह आज सुनने को मिली थी ।वह मेरे प्यार को कबूल कर चुके थे और देखते ही देखते कुछ दिनों में हम दोनों एक दूसरे से गले में लिपट गए थे। सदियों से बंजर जमीन पर आज पहली बार प्यार की गुलाब खिल रही थी। सभी दिशाएं मोहब्बत की इस रंग में विभोर हो चुकी थी। 

अब हम लैला मजनू की तरह पूरे कॉलेज में फेमस हो चुके थे हमारे सभी दोस्त उसे भाभी कहकर बुलाने लगे थे। इसके बाद हम दोनों कई बार साथ में घूमे मस्ती किए, कभी इस पार्क में तो कभी उस पार्क में ।अपनी बाइक पर लेकर उसे जब पटना की सड़कों पर निकलते थे तो सारी लोगों की नज़र हम दोनों पर टिके रहता था । लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब हमारी कॉलेज खत्म होने को आ रही थी। हम दोनों की अलग होने की डर खाई जा रही थी दिमाग में अलग-अलग ,गजब - गजब के ख्याल आ रहे थे । 

कभी सोचते हम दोनों शादी कर ले तो कभी हमें अपने परिवार के फैसले का डर सताने लगता । 

जब हमारी कॉलेज खत्म हुई तो हम दोनों अपने शहर वापस आ गए लेकिन उसकी यादों ने यहां जीना मुश्किल कर रखा था। 

कई दिनों तक कुछ करने का मन नहीं कर रहा था बस यूं ही सोचता तो कभी उदासी में उसकी तस्वीरें को निहारता रहता था। मैं भाई-बहन में सबसे बड़ा था जिसके कारण पढ़ाई के बाद  जिम्मेवारियां बनती है कि मैं जल्द से जल्द जॉब कर लो ।
मैंने भी अपने फर्ज निभाने हेतु सब कुछ धीरे-धीरे भूलने की कोशिश करना शुरू कर दिया। इसी बीच मुझे एक अच्छे कंपनी की जॉब ऑफर हुई। इतने दिनों में निशा मुझे भूल गई होगी इस तरह का ख्याल मन में बहुत बार आया । लेकिन मैं यही सोचता था जब मैं उसे भूल नहीं पाई तो वह मुझे कैसे भूल गई होगी।
 दिल तो चाहता था सब कुछ भूल कर उसके पास चले  जाऊँ  लेकिन जिम्मेवारियां मुझे मजबूती से जकड़ा हुआ था।
 मैं आधे मन से जॉब के लिए इंटरव्यू देने चला गया। मुझे इस जॉब में कोई इंटरेस्ट नहीं था मगर फिर भी उस जॉब के लिए चला गया। जैसे नदियों का पानी बिना सोचे समझे समुद्र की तरफ चला जाता है ठीक मैं भी उसी तरह बिना सोचे समझे चला जा रहा था।
 अब मैं इंटरव्यू के लिए ऑफिस पहुंच चुका था । ऑफिस में कई सारे लोग इंटरव्यू के लिए बैठे थे। मैं भी अपनी बारी का इंतजार करने लगा। वह वहां भी निशा की यादें खाई जा रही थमैं भी अपनी बारी का इंतजार करने लगा। वह वहां भी निशा की यादें खाई जा रही थकुछ समय बाद मेरी भी बारी आ चुकी थी
"  सर!  इंटरव्यू के लिए आपको अंदर बुलाया जा रहा है"  उस कंपनी के एक कर्मचारी ने मेरे पास आकर बोला ।ओके " कहकर मैं ऑफिस के दरवाजे को हल्के से धक्का देकर अंदर गया ।
 बड़ी - बड़ी आंखें,  रौदार चेहरा,  चेहरे पर कड़क सवाल  और वाले हल्के सफेद एक व्यक्ति कुर्सी पर बैठा था।
  उन्होंने मुझे बैठने का इशारा किया इसके बाद उन्होंने पूछा  "नाम क्या है ?"
 "जी , राजू अग्रवाल " मैंने कहा।
 इसके बाद उन्होंने कई सवाल पूछा जिसका जवाब मैे पूरी कॉन्फिडेंस के साथ देता  गया ।
 उन्होंने कुछ अजीब तरह के सवाल भी पूछे जैसे -तुम्हारे पिताजी क्या करते हैं ? तुम कितने भाई बहन हो ? इन सवालों के अलावा और भी कई सवाल पूछे पर मैंने सभी प्रश्न का जवाब  बिल्कुल सही सही देता है  गया ।क्या किसी से प्यार करते हो ? " उनका यह प्रश्न सुनकर मैं स्तब्ध रह गया । 

भला जॉब के लिए इस तरह का प्रश्न कौन पूछता है ! मैंने इस प्रश्न का जवाब खामोश रहकर ही देना उचित समझा । इस प्रश्न को सुनकर ऐसा लग रहा था यह जॉब इंटरव्यू कम और मैरिज इंटरव्यू ज्यादा लग रही थी । 

" तुम मुझे बहुत पसंद हो " उन्होंने बोला। 

अपने दाएं हाथ से रिंग बेल का बटन दबाकर किसी को बुलाया । 

" इन्हें लेकर मैडम के केबिन में जाओ " उन्होंने आदमी को आने के बाद कहा । मैं उस आदमी के साथ दूसरे केबिन की तरफ चला गया । 

मन मचल रहा था " नौकरी मिलेगी या ऐसे ही वापस लौटना पड़ेगा! " 

अगर नौकरी मिल जाएगी तो अच्छी वरना .......। मैं जब दूसरे केबिन के अंदर गया तभी मुझे आवाज सुनाई पड़ी " साहब ! बोलो कितना सैलरी लोगे ? " 

जब मैं कुर्सी पर बैठा देखा तुम मेरी आंखें खुली की खुली रह गई पूरे शरीर में बिजली सी दौड़ गई। 

चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए वहां पर निशा बैठी थी । मैं तो निशा को देखकर हक्का-बक्का सा देखता रह गया तभी वह मुझे बोली " क्यों साहब चौक गए ? " 

मैंने कहा " निशा ! तुम ?"
तुम्हें क्या लगता था हम तुम्हें भूल गए ? मैं भी तुम्हें उतना ही मिस करतीथी जितना कि तुम करते थे । 

फिर हम दोनों ने एक दूसरे को गले लगा लिया। कुछ पल तक तो कहीं हम एक अलग सी दुनिया में खो गए । ऐसा लग रहा था किसी दिवालिया हुए इंसान को उसका पूरा संपत्ति फिर से वापस मिल गई हो। 

निशा ने बताया कंपनी उसकी पापा की ही है और निशा ने खुद बोलकर ही मेरे नौकरी के लिए ऑफर दिलवाई थी। 

क्योंकि मेरे बारे में निशा अपने पापा से बात कर चुकी थी और पापा उसके मुझसे मिलना चाहते थे। 

अब तो हम दोनों मिल चुके थे उसके बाद हम दोनों की शादी हमारे परिवार की रजामंदी से कर दिया गया। 

जन्मो जन्म तक साथ निभाने की वचन देकर आज हम दोनों साथ है। 



मैं बहुत खुश हूं कि मुझे मेरा पहला प्यार मिल गई और भगवान से प्रार्थना करता हूं मुझे अगले जन्म में भी इतना ही प्यार करने वाले निशा ही मिले । 

" ना चाहत है मुझे इन सितारों की, ना चाहत है इन बहारों की। 

तू हमेशा मेरे साथ रहे यही चाहत है तेरे दीवाने की । "

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